
तीसरा मोर्चा नहीं, सिर्फ मोदी विरोधी मोर्चा
सारा देश जहां एक तरफ गुडी पाडवा, उगादि और युगादि मना रहे थे उसी दिन दो भाषण हुए जिन्होंने सुर्खियों में जगह पाई। ये दोनों राजनितिक भाषण थे और दोनों भाषणों के वक्ता ने केंद्र में आसीन मोदी सरकार को जमकर कोसा। पहले भाषण में कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी को आड़े हाथों लिया, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने भी मोदी पर निशाना साधा। ठाकरे ने तो यहां तक कहा, कि जिस तरह मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की घोषणा की थी उसी तरह हमें भी मोदी मुक्त भारत का नारा देना चाहिए। इसके लिए सभी विपक्षी दलों को एकत्र आने की अपील भी की।
यद्यपि आज की घड़ी में राज ठाकरे की मनसे पार्टी की ताकत अधिक नहीं है – लोकसभा में उसका एक भी सदस्य नहीं है जबकि राज्य विधानसभा में ही केवल एक ही सदस्य है – फिर भी ठाकरे के वक्तव्य को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है, कि उनके वक्तव्य से इस वक्त सभी विपक्षी दलों की छटपटाहट झलकती है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर भाजपा के गढ़ गोरखपुर में भाजपा को धूल चटाई। साथ में फूलपूर की सीट भी वापस हथिया ली है। इससे विपक्षी दलों के हौसले बुलंद हो चुके है और गैर-भाजपाई दलों को लगने लगा है अगर वे मिलकर लड़े तो कमल का खिलना रोक सकते है।
एक जमाना था जब देश में कांग्रेस का राज था और भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी। इन दोनों दलों से एक हाथ दूरी पर रहनेवाले दल तीसरे मोर्चे के नाम से इकट्ठा होकर केंद्रीय सत्ता में अपने निवाले पाते थे। लेकिन चार साल पहले नरेंद्र मोदी नाम की आंधी ऐसे आई, कि सभी बने-बनाए समीकरण हाशिए पर चले गए और भाजपा की तूती बजने लगी। यहां तक, कि कभी एकछत्र राज चलानेवाली कांग्रेस भी अन्य खुदरा दलों के साथ एक कतार में आ गई। आलम यह थी, कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जो भूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी उसके बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि विपक्षी दलों को 2019 को भूलकर 2024 की तैयारी करनी चाहिए। लेकिन उसके बाद भाजपा को गुजरात में जैसे-तैसे विजय पाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी और कुछ उपचुनावों में हार का सामना भी करना पड़ा।
इसके बाद विपक्षी दलों के मुरझाए हुए चेहरों पर फिर से उम्मीदों कि किरण जगने लगी और सभी गैर भाजपाई दलों ने हाथ मिलाने का कार्यक्रम शुरू किया। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इसके लिए बाकायदा अगुवाई भी की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों ने उसमें खुशी-खुशी सहभाग जताया। राव ने देश में एक गैर-भाजपाई और एक गैर-कांग्रेसी सरकार का विकल्प स्थापित करने के पक्ष में आवाज बुलंद की है। केसीआर के नाम से मशहूर राव ने हाल ही में राजनीति में गुणात्मक बदलाव की बात कही थी। चार मार्च को ममता बनर्जी ने राव से फोन पर बात कर उनके बयान पर पूर्ण सहमति जताई थी कि वह शासन में‘‘ गुणात्मक बदलाव” लाने के लिए राष्ट्रीय राजनीति में हिस्सा लेने के लिए तैयार है।
यह साफ है, कि गैर-कांग्रेसी दल भाजपा को कमजोर पड़ता हुआ देख रहे है और कमल के मुरझाने से खाली हुई जगह में खुद को स्थापित करने की जुगाड़ में लगे है। करीब-करीब 1990 के दशक की तरह! तीसरे मोर्चे को लगता है कि भाजपा 2014 की तरह अकेली की दम पर सरकार स्थापन करने की शक्ल में नहीं होगी और ऐसे में बाहरी दलों के मदद की जरूरत होगी। यह सारी मशक्कत उसी के लिए की जा रही है।
लेकिन अब यह साफ हो गया है कि अगर यह तीसरा मोर्चा बनता भी है तो वह कोई सिद्धांत आधारित या कार्यक्रम आधारित नहीं होगा। बल्कि उस का एकमात्र तत्व नरेंद्र मोदी का विरोध होगा। वर्ष 2019 के चुनाव 2014 की तरह दो दलीय ना होकर तीन कोणीय या बहु-कोणीय होने की संभावना बहुत अधिक है। इस बहु-कोणीय मुकाबले की धुरी मोदीविरोध ही होगी। कांग्रेस भी चाहती है, कि इसी धुरी पर एक मोर्चा बने और कांग्रेस भी चाहती है, कि सारे दल उसके इर्दगिर्द हो। हालांकि इस लढ़ाई का नेतृत्व किसी भी सूरत में कांग्रेस अपने युवराज को सौंपना चाहती है, उसे अन्य किसी का नेतृत्व मान्य नहीं है और बाकी दलों को यह हजम नहीं हो रहा है। ऐसे में अगर मोदीविरोधी दो मोर्चे बनते है तो प्रधानंत्री मोदी और भाजपा के लिए इससे बेहतर दृश्य कोई और नहीं होगा।